शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

ऐ ज़िन्दगी मेरी तुझमें भी कुछ असर होता ।
वक़्त थोड़ा ही सही जो खुद की नज़र होता ।

मंथन किये हैं उम्र भर अमृत की आस में
जब भी हिस्सा हुआ उसके हिस्से ज़हर होता ।

बेमियादी हो गए सब बेजुबान जज़्बे
रोशनी बोलती जो चरागों में असर होता ।

जवानी भर निभाया ये दस्तूर हमने
हाथ में फूल आँख में ज़माने का डर होता ।

सीख ही जाते दुश्मनी के कायदे तमाम
घर में मेरे भी दोस्तों का जो बसर होता ।

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