दूसरी बात,यह शंका व्यक्त की जा रही है कि राजस्थानी को मान्यता मिल जाने से हिंदी के विकास में बाधाएँ उत्पन्न होंगी .कैसे? जिस भाषा ने हिंदी को अपना स्वर्णिम युग ही भेंट कर दिया हो,वह हिंदी के विकास में रुकावट कैसे बन सकती है?मान्यता का अर्थ यह कदापि नहीं है कि राजस्थानी हिंदी से पूरी तरह किनारा कर लेंगे.हम राजस्थानियों की इस मांग में संकीर्णता का भाव नहीं है.हिंदी के प्रति किसी प्रकार का दुर्भाव नहीं है.हिंदी के विकास में लगे राजस्थानी भाषा के साहित्यकारों की संख्या इस तथ्य की साक्षी है.राजस्थानी को मान्यता का प्रश्न वस्तुतः हमारी अस्मिता से जुड़ा हुआ है,पहचान को पाने का प्रयास है यह. करोड़ों लोगों की भावनाओं की उपेक्षा की जा रही है.राजस्थानी के सामने टुच्ची सी साख वाली भाषाओँ को मान्यता मिले अरसा हो गया ,लेकिन हर प्रकार से संपन्न भाषा राजस्थानी को निरंतर तिरस्कृत किया जा रहा है.वास्तव में यह हमारे राजनीतिक नेतृत्व पर भी एक प्रश्न चिह्न है.जो नेतृत्व हमारी पहचान की रक्षा नहीं कर सके,अपनी मायड़ भाषा को अपना बताते हुए जिन लोगों को शर्म आती हो,भाषा के सवाल पर जो लोग मौनी बाबा बन बैठे हों,ऐसी जमात को हमने अपनी कमान सौंपी है....दुर्भाग्य.
आस्तीन रा सांपा नै समझावै कुण
बाड़ खेत नै खावै तो बचावै कुण .
jordar blog!
जवाब देंहटाएंbadhayje !
aaj tha padi ke raisinghnagar me ho.milo e koni itta neda rey'r?kamal hai,jabak e!
भाई चैनसिंहजी,
जवाब देंहटाएंराम-राम।
आपरै ब्लॉग पर मायड़भाषा री बात बांच'र घणो हरख व्हियो। म्हारै हिवड़ै री कळी-कळी खिलगी। हिन्दी आपणी सम्पर्क भाषा है। आपां बीं रो सम्मान करां। पण हिन्दी रा कई तथाकथित समर्थक आपणी मायड़भाषा रो अपमान करै। ओ अपमान सह नीं सकां। क्यूं कै मां-मायड़भाषा अर मायड़भोम रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो व्है।
-सत्यनारायण सोनी, व्याख्याता-हिन्दी,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, परलीका,
जिला-हनुमानगढ़ (राजस्थान)
बात तो सही है आपकी ....डटे रहे .....!!
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