शनिवार, 25 दिसंबर 2010

रात की बात


धुंधियाए आकाश के आईने में
चाँद उदास दिखता है

अंधेरों से दामन छुड़ा कर
रात ने छिटकी तारों जड़ी चूनर
सुखाने डाल दी आकाश की अलगनी पर

यादों के मिटने का वक़्त है
रात के साये
चाँद के मफलर से लिपटे
उदासी के रंग को गहरा कर रहे

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

एक और भीष्म


बेशक चुप हो जाना
हार जाना नहीं है
मगर चुप्पियाँ
किनारे बैठ कर तमाशा देखने का बोध है

कंठ की विवशताएँ
शब्दहन्ता बनती हैं
हवाओं में एक और भीष्म
जबडाता चला जाता है