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आस्था के पुष्पों
और मुर्दों ने तुझे लील लिया
बाज़ार के टापू धड़धड़ाते रहे
सीने पर तेरे
पर्वतों की कृपणता ने तुझे कील लिया
पुरानी तस्वीरों और स्मृतियों के घेरे
तुझे आकाशगंगा बना देंगे
पद-चिह्नों की धूल
चकाचौंध में दुबक तमाम हो रही
कुछ उजले हाथ अपर्याप्त हैं
ये ध्वजाएँ बहुत थोड़ी हैं
भीड़ के भेजे में कौन उकेरे
तेरे दर्दनाक हादसों की टीस
उपाधियों और नामकरणों की
इस समूची पीढ़ी की पैदावार छोड़िये
उन टापुओं की मोहिनी माया
पेट को रोटी दे न दे
वंशजों के वृक्ष को मट्ठा अवश्य देगी l