गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

रात की कहानी


रात के चेहरे पर
रोशनी की लकीर खींचते से
आ लगे किनारे तुम्हारे ख़याल

आकाश की जाजम पर
होने लगी चाँद की ताजपोशी
तारों की जयकार घुटने लगी
एक पुरानी नदी यादों की
उत्तर से दक्षिण
दूर तक पसरती चली गई

सूरज के रखवाले ने जब खोले द्वार
आँसुओं के निशान छिपाने लगे
फूलों पर बिखरे पद-चिह्न अपने

रात की कहानी
एक उम्र सी गुजरती है
हर रात

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

चित्तौड़


इन पत्थरों की
बुझी नहीं है अभी आग
दर्प का लेप
दरक भले ही गया हो
दिपदिपाता अब भी वहीं है

शताब्दियों की दंतकथाएँ
हर चट्टान हे चेहरे पर
साक्षीत्व के हस्ताक्षर हैं

भूगोल की भींत पर
फड बांचता पुरखों की
मत्स्य-रूपा पठार का भोपा

रक्त के खंडहर हैं ये
जिनको छूते ही
शिराओं के थोथले जाले
लाल हो उठते हैं

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मन में इन्द्रधनुष


मैंने मन के तहखानों को खंगाला
दीवारों पर एक इन्द्रधनुष संवारा
अंधेरों को बुहार कर कुछ जगह निकाली

बाहर हंसती हवा का एक झौंका
बगल में गुच्छा लिये फूलों का
मुस्कुराता खड़ा था

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

तुम्हारी खूबसूरती



बासनों की रगड़ी मिट्टी की सुगंध से
जो लोग बैठे हैं बहुत दूर
देर रात तक कानों में
उतरती पाजेबों की छनक छाए रहती है

तुम्हारी खूबसूरती कितना मायने रखती है
उनके लिए
जिनके तकिये के दोनों किनारे
हर सुबह
दो ओस की बूँदें टंगी मिलती है