रविवार, 17 अक्तूबर 2010

मन में इन्द्रधनुष


मैंने मन के तहखानों को खंगाला
दीवारों पर एक इन्द्रधनुष संवारा
अंधेरों को बुहार कर कुछ जगह निकाली

बाहर हंसती हवा का एक झौंका
बगल में गुच्छा लिये फूलों का
मुस्कुराता खड़ा था

6 टिप्‍पणियां:

  1. कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।
    बहुत सुन्दर रचना । आभार
    ढेर सारी शुभकामनायें.'
    विजयादशमी की बधाई एवं शुभकामनाएं

    Sanjay kumar
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. बगल में गुच्छा लिये फूलों का
    मुस्कुराता खड़ा था

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर .......रचना

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  3. 'अंधेरों को बुहार कर कुछ जगह निकाली'

    यह कार्यकलाप मनुष्य को जीवन पर्यन्त अपने दिलो-दिमाग के लिए करना चाहिए.
    छोटी भाती रचना.

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  4. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
    आज इसी गुलदस्ते की जरूरत है!
    --
    आपकी पोस्ट की चर्चा 19 अक्टूवर को चर्चा मंच पर लगाईगई है!
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. वाह ! चंद शब्दो मे ही गज़ब की भावाव्यक्ति।

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