ज़िन्दगी में अनोखे रंग भरे हैं .......ईश्वर ने । रंग मौसम के ....रंग भावों के ...... रंग संवेदनाओं के । इन्हीं रंगों को देखने , समझने , और अभिव्यक्त करने की कोशिश है ये ब्लॉग.... ...... ज़िन्दगी - ऐ- ज़िन्दगी.... ।
मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010
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भूगोल की भींत पर
जवाब देंहटाएंफड बांचता पुरखों की
मत्स्य-रूपा पठार का भोपा
रक्त के खंडहर हैं ये
जिनको छूते ही
शिराओं के थोथले जाले
लाल हो उठते हैं
best lines...
एक राजस्थानी वीर की गाथा एक राजस्थानी की जुबानी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना, चित्तोड़गढ़ है ही कुछ ऐसा, जिस ने भी सुना और देखा नमस्तक हो गया...
वैसे इन पंक्तियों ने कमाल कर दिया :
शिराओं के थोथले जाले
लाल हो उठते हैं
मनोज खत्री
चित्तौड़ पर बड़ी सशक्त कविता लिखी ....
जवाब देंहटाएंबधाई .......!!
शताब्दियों की दंतकथाएँ
हर चट्टान हे चेहरे पर
साक्षीत्व के हस्ताक्षर हैं
यहाँ 'चट्टान हे'की जगह चट्टान के लिखना चाहते थे शायद आप .....
देखिएगा ......
भूगोल की भींत पर
फड बांचता पुरखों की
मत्स्य-रूपा पठार का भोपा
यहाँ भी फड शब्द मेरे लिए नया है ....अर्थ बताइयेगा ......!!
@मनोज जी..पूजा जी...आपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं@हरकीरत जी..प्रेरणा और प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद।
क्षमा चाहता हूँ ..टाइपिंग में गलती की वजह से 'के'के स्थान पर 'हे'लिखा गया॥
'फड' शब्द राजस्थानी लोक-कला से सम्बन्धित है.इसमें एक कपड़े पर चित्रांकन के माध्यम से ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को गायन के द्वारा श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है । इस कला में राजस्थान के भोपा जाति के पुरुष और स्त्री दोनों की सहभागिता होती है..गायन के माध्यम से कथा वाचन का काम भोपण द्वारा किया जाता है (मुख्य भूमिका के तौर पर )