गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

चांदनी जब चाँद से छिटककर

रेत पर पसर जाती है ,

रात की दुल्हन हौले-हौले

चांदी सी संवर जाती है ,

दूर दिशाओं के कानों तक

चुपके-चुपके ख़बर जाती है ,

प्रेम-संदेशा लिए हवा तब

लहराती सी गुज़र जाती है.

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