मंगलवार, 30 मार्च 2010

नयन हो गए आज फिर सजल ।
याद वो आने लगे प्रतिपल ।

टूट के बरसा अबके सावन
सहमा-सिहरा घर का आँगन
हाल ये उनसे कह दे मन

हरिया गयी है पीर चंचल
याद वो आने लगे प्रतिपल।

प्राण वेदना विकल सघन सी
पली बढ़ी फैली है वन सी
विगत कथाएँ छाई घन सी

कठिन है कोई जाए बहल
याद वो आने लगे प्रतिपल।

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