बाज़ार ने बड़ा उधम मचाया
बहुत उथल-पुथल की
वो भी सरे-बाज़ार
उसकी शिकायतें की गयीं
पुलिस थाने में,पुस्तकों में
पत्रिकाओं में,मंत्रालय में
पर्चे बांटे गए,चिपकाए गए
टी.वी. पर भी
उसका कड़ा विरोध
दर्ज कराया विद्वान वक्ताओं ने
और वातावरण विरोधमय हो उठा
अब उसका बचना
मुश्किल लग रहा था
लोग कह रहे थे
बस..अब बाज़ार के दिन
समझो लद गए हैं।
पर उसका क्या जो लोगों ने
बाज़ार के गले में पट्टा बांधा
और अपने दरवाज़े पर बांध लिया
वे कहते रहे , समझाते रहे
हम इसे बांध कर रखते हैं
किसी तो काट नहीं खाएगा
वो कुत्ता बड़ा सयाना लग रहा था
दरवाज़े पर बंधे कुत्ते
बड़े सुंदर नज़र आते हैं ।
लेकिन यह कोई आम कुत्ता नहीं था
नरभक्षियों की प्रजाति का था
दिखते नहीं है नरभक्षी
मगर होते अवश्य हैं
एक बार मुँह को खून लगा कि लगा
ऐसे नरभक्षी पहले कभी नहीं देखे
न हुए होंगे
और बाज़ार एक ऐसा ही नरभक्षी कुत्ता है.
humm......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बढ़िया प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंसागर किनारे का द्रश्य मनमोहक लगा - हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमै सोच रहा हूं क्या बाजार वाकई नर-भक्छी होता है!फ़िर तो चिदंबरमजी ही शायद कुछ उपाय कर पाएं।
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
जवाब देंहटाएंकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें