सोमवार, 3 मई 2010

स्वप्न

स्वप्न निशाचर होते हैं
इनकी किश्तियाँ
अँधेरे की
आकाशगंगाओं पे तिरतीं हैं

कुछ अँधेरा चाहिये
स्वप्न संजोने के लिये
नरम होते हैं ये,मुलायम
इनकी नरमी
अँधेरे में अधिक
महसूस की जा सकती हैं.

तमाम आकाशगंगाएँ
रीत गयी हैं अँधेरे की
और किश्तियाँ
घात पर जंग खा रही हैं.

ये अँधेरा
एकाकीपन का है
जहाँ निशाचरों के
कारवाँ निकलते हैं.

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