रविवार, 16 मई 2010

जब से वो मशहूर हो गए ।
ख़ुद से कितना दूर हो गए ।

बाहर इतनी चमक बिखेरी
भीतर से बेनूर हो गए ।

देखा जिनको सजदे में था
इश्क हुआ मगरूर हो गए ।

घिन से चेहरे मुफ़लिसी के
दौलत आई हूर हो गए ।

ख़ुद को देखें आँख पराई
दुनिया के दस्तूर हो गए ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर,सशक्त अभिव्यक्ति...... दुनिया के बदलते दस्तूरों पर करारा व्यंग्य...श्रेष्ठ सृजन अनवरत रखे बन्धु..........बधाई।

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  2. सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।

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