कविता
एक रोहिड़े का फूल है
गर्मियाँ कसमसाती हैं
भीतर कहीं गहरे तो
रोहिड़ा सुर्ख़ सा सिर तान
धरा पर कौंध उठता है
आस पास जब
सारी निशानियों के पर उतर जाते हैं
अस्तित्वों के ढूह
शुष्क और बंजर नज़र आते हैं
न मालूम
कहाँ से शेष बची कुछ लालिमा को
यत्न से निथारकर
रोहिड़ा
तड़पती प्रेमिका की धरती पर
प्रेम के दो फूल टांक देता है
रोहिड़े का यह फूल
मेरी कविता है
हवा की बेचैनियाँ
जब करवट बदलती हैं
ठन्डे आकाश की बाँहों में
अंगड़ाई लेने लगती है जब
बादलों की तप्त अभिलाषाएँ
झुलसती आँख में आँसू सी
कविता मुस्कुराती है
ठीक वैसे ही
धरती की पथराई प्यास के सीने पर
धर कर अपने पाँव
उगते सूरज का मुखौटा पहन
गर्मियों की भीड़ में एक अकेला
रोहिड़ा ही है
जो कविता की तरह
रेत के चेहरे पर छप जाता है ।
सुन्दर प्रस्तुति ,,,आभार
जवाब देंहटाएंsundar rachna
जवाब देंहटाएंआस पास जब
जवाब देंहटाएंसारी निशानियों के पर उतर जाते हैं
अस्तित्वों के ढूह
शुष्क और बंजर नज़र आते हैं
न मालूम
कहाँ से शेष बची कुछ लालिमा को
यत्न से निथारकर
रोहिड़ा
तड़पती प्रेमिका की धरती पर
प्रेम के दो फूल टांक देता है .... bahut hi pyaare ehsaas
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! उम्दा प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंचैन सिंह जी रोहिडा और उसके पुष्प पर आपकी कविता बहुत अच्छी लगी, रोहिडा हमारा राज्य पुष्प है, १९८२ में जब यह घोषणा हुई तब से लेकर आजतक कई सरकारें आई और चली गयी पर किसीने भी प्रकृति के इस अद्भुत उपहार को सुरक्षित नहीं रखा.
जवाब देंहटाएंमैं और कुछ दोस्तों ने मिलकर रोहिडा संस्था की स्थापना कुछ वर्ष पूर्व की थी, तब मालूम चला की सरकार और अधिकारी कितने उदासीन हैं.. हम तब भी और अब भी सिर्फ पेड़ लगाते हैं, रोहिडा उसमे सबसे ज्यादा है.
सच में कविता बहुत ही सुन्दर है....
मनोज खत्री
जयपुर
कड़ुवाहटोँ से भरी जिन्दगी मेँ, एक गीत प्यार का गाओ तो जाने। कभी तपते, ठिठुरते धूल के गर्दो गुब्बार मेँ, रोहिड़ा के फूलोँ सा मकरन्द लूटाओ तो जाने॥
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