सब अपनी अपनी लय में गाते हैं
तुम भी गाओ
यह गीत
अलापो चाहे
या फिर टेक लो
साज सजे तो सजाओ
लेकिन इस गीत को गाओ
उगे हों भले ही
कंठ में
शूलों के बाड़े
या फिर रोप जाता हो कोई
रेत रंगे आकाश में
अँधेरे की
पंखों वाली कीड़ियों के बीज
सुर ताल के
इस अकाल में भी
शब्दों की नमी
अभी कायम है बराबर
तुम अपनी जड़ों से
पूछकर देखो
दो एक पुरानी धुनें
बची होंगी अवश्य
उन्हीं को सींचो
सींचकर साधो
बहुत बासी नहीं हुआ अभी
ये गीत जीवन का ।
तुम अपनी जड़ों से
जवाब देंहटाएंपूछकर देखो
दो एक पुरानी धुनें
बची होंगी अवश्य
उन्हीं को सींचो
सींचकर साधो
बहुत बासी नहीं हुआ अभी
ये गीत जीवन का ।
बहुत सार्थक और गहरे भाव हैं कविता मे । बधाई।
बहुत सुन्दर रचना..बधाई.
जवाब देंहटाएं***************************
'पाखी की दुनिया' में इस बार 'कीचड़ फेंकने वाले ज्वालामुखी' !
तुम अपनी जड़ों से
जवाब देंहटाएंपूछकर देखो
दो एक पुरानी धुनें
बची होंगी अवश्य
उन्हीं को सींचो
सींचकर साधो
बहुत बासी नहीं हुआ अभी
ये गीत जीवन का ।
सही कहा जड़ों को सींचते रहना चाहिए वर्ना सूखने का डर रहता है .....!!
सुंदर भाव ....!!
बहुत बासी नहीं हुआ अभी
जवाब देंहटाएंये गीत जीवन का ।
Beautiful expression !
jitni sunder kavita , utna hi sundar chitra.
जवाब देंहटाएंwah wah..