
खोलता हूँ आँखें
हवा के लिहाफ में
हर रोज़ सुबह-सुबह
दिन किसी बच्चे सा मुस्कुराता है
धूप की बुढ़िया चली आती है
पूरब के किस देस से जाने
गठरी लादे काँधे
दिन भर का बोझ
चुभती है दुपहरी की किरचें
सड़क की आँखों में
किरकिराती हैं
आखिरी बस की तरह लदी-पदी शाम
निकल जाती है
हिचकोले खाती सी
बहुत सुन्दर चित्रण्।माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हो॥
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंआपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएँ!
♥
जवाब देंहटाएंवाह !
अच्छी कविता है चैनसिंह जी !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
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