रविवार, 3 अप्रैल 2011

ये अहसास जरूरी है

खोलता हूँ कभी कभार 
उस पुरानी पोटली को 
जंग खाई चीज़ों के बीच ढूँढता हूँ कुछ

एक पूरी की पूरी बस्ती 
जिन्दा हो उठती है भीतर 

धुएँ की महीन सी लकीरों को छेदती 
नमी की एक परत उभर आती है आँखों में 

जब तक जिएगा ये पोटली का सामान 
अहसास रहेगा 
अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का                             

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावपूर्ण...सुन्दर रचना

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  2. क्या अभिव्कती है ?
    बहुत ही बढ़िया

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  3. जब तक जिएगा ये पोटली का सामान
    अहसास रहेगा
    अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का.....

    शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मर्मस्पर्शी रचना ....

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  4. जब तक जिएगा ये पोटली का सामान
    अहसास रहेगा
    अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का
    adbhut ehsaas ...

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  5. sundar dil ko chune wali abhivyaktihai .really i impressed

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  6. बेहद गहन अभिव्यक्ति। धन्यवाद|

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  7. waah waah ,

    yaado ki gathri ... bahut hi sudnar abhivyakti .....

    badhayi

    मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

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