खोलता हूँ कभी कभार
उस पुरानी पोटली को
जंग खाई चीज़ों के बीच ढूँढता हूँ कुछ
एक पूरी की पूरी बस्ती
जिन्दा हो उठती है भीतर
धुएँ की महीन सी लकीरों को छेदती
नमी की एक परत उभर आती है आँखों में
जब तक जिएगा ये पोटली का सामान
अहसास रहेगा
अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का
बहुत भावपूर्ण...सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंnostalgia.. liked it so much..
जवाब देंहटाएंManoj K
क्या अभिव्कती है ?
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जब तक जिएगा ये पोटली का सामान
जवाब देंहटाएंअहसास रहेगा
अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का.....
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी मर्मस्पर्शी रचना ....
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजब तक जिएगा ये पोटली का सामान
जवाब देंहटाएंअहसास रहेगा
अपनी गर्भनाल से जुड़े होने का
adbhut ehsaas ...
sundar dil ko chune wali abhivyaktihai .really i impressed
जवाब देंहटाएंबेहद गहन अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंwaah waah ,
जवाब देंहटाएंyaado ki gathri ... bahut hi sudnar abhivyakti .....
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html