मंगलवार, 7 सितंबर 2010

जो रोशनी दे


हम सबने
अपने अपने परमात्माओं को पुकारा
हमें रास्ता दिखाओ
हम भटके हुए हैं
पर दिशाओं ने
चुप्पी की चादर ओढ़ ली
कोई नहीं आया

इतने में सूरज के दरीचे खुले
रोशनी के रास्ते पिघले
और हम सब
अपने अपने
घरों को चल दिये

1 टिप्पणी:

  1. इतने में सूरज के दरीचे खुले
    रोशनी के रास्ते पिघले
    और हम सब
    अपने अपने
    घरों को चल दिये
    अच्छी कविता ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.

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