लोग कहते रहे
पंख तेरे हैं पर उड़ान नहीं
कहते रहे सैकड़ों हजारों साल
बांधते रहे देहरी तक आकाश
एक सम्मोहन की तरह
सीमाएं उसके अस्तित्व पर
मढ़ती चली गई
आज उस लड़की की आँख में
छोटे-छोटे कुछ बादल तैरते हैं
सपनों की पाल खुल नहीं पाती
एक घर है
एक आँगन है
मुस्कुराहटें कम सही काफी हैं
प्रेम के कुछ प्रयास हैं
शास्त्रीय किस्म के इस सम्मोहन ने
कुछ संभावनाओं को लीला है या नहीं
कह नहीं सकते मगर
इन रंगीन पंखों को निश्चित ही
कुछ ऊंचा
और ऊंचा उड़ना चाहिये था