मंगलवार, 25 मई 2010

प्रेम: कुछ अहसास

बादल
अक्सर पूछते हैं
मुझसे तुम्हारा पता
और हवा बेहया - सी
उन्हें सब कुछ
बता देती है।
- - - -
मेहँदियाँ आईं
रचा डाले मेरे कोरे काग़ज़
कैसे - कैसे रंगीन , खुशबूदार
मेरा मन इतना मोरपंखी
पहले कभी न था ।
- - - -
हवाओं पर सवार होकर आईं
तुम्हारी साँसों ने
मेरे सारे पर्वत पिघला दिये
आँसुओं की नदी में
गुरूर की किश्तियाँ
डूबने लगीं.......एक - एक कर ।
- - - -
खुशबुओं ने कपड़े बदले
चाँद की अटारी जा बैठीं
मेरी छत से
तुम्हारी मुंडेर तक
रोशनी की एक
बन्दनवार बांध डाली
सूरज निकलने तक
नज़ारे बड़े हसीन दिखते थे ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. पूछते बादल,बेहया हवा,हवा पर सवार साँसों से पर्वत का पिघलना,गुरूर की कश्तियां,चाँद की अटारी..........बङे सुन्दर प्रतीक...सुन्दर बिम्म योजना.............बेहद उम्दा........लगे रहो गुरू........अच्छी रचना पढने को मिली..........श्रेष्ठ सृजन अनवरत रखे बन्धु.........शुभकामनाएं।।

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  2. वाह लिसाड़िया के राजकुमार चैन सिँह जी शेखावत सा,
    घणी खम्मा!
    हुकुम कई दिन सूं गांवतरै माथै हो।बगत नीँ मिल्यो।आंवतां ई
    आपरो गोथळियो संभाळ्यो।बो तो रीत्यो ई लखायो!घालद्यो टाळवां राजस्थानी क्लासिक गाणां अर राजस्थानी रा टाळवां लेख,कोथ,बातां अर फोटूआं।फेर आ सी मजा।
    आपरी हिन्दी कवितावां सांतरी !
    कदै'ई बैठ'र बात करस्यां-द्वक !

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  3. आ शब्द पुष्टि आळी फाचर चटकै ई अळगी करो!आ कांई खेबी है थारै अर पाठकां बिचाळै ?आप तो इयां आडा जड़'र बैठ्या हो जाणै बिरखा सूं डरतो सांडो बिल ढाब'र बैठ्यो हुवै!

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  4. बादल
    अक्सर पूछते हैं
    मुझसे तुम्हारा पता
    और हवा बेहया - सी
    उन्हें सब कुछ
    बता देती है।

    इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  5. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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