सोमवार, 3 मई 2010

भूखे जंगल

बन्दूक के पीछे की भूख
भेद नहीं सकती
हमारे नग्नता-प्रूफ चश्मों को

हमारी भाषा और कपड़े
हमें सभ्य बनाते हैं
लेकिन
असभ्यता की हक़ीक़त
मानों दिल्ली से दूर है

भूख को बारूद बनाने की
ये भूल अपराध है
या कि
भूख ही है अपराध

बन्दूक पर बन्दूक से
और उगेंगी बंदूकें
किन्हीं जंगलों में
और हम
व्यस्त हो जाएँगे
यह सिद्ध करेंगे
कि भूखे जंगल अपराधी हैं.

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