गुरुवार, 27 मई 2010

हम थार के पानी हैं


थार के पानी हैं हम

बहुत गहरी हैं

जड़ें हमारी

बहुत गहरी हैं

हमारी जिजीविषाएँ

पानी बहुत गहरा है

फिर भी ।


नानी ने सुनाई

पानी की कहानी

दादी ने बताई

पानी की कहानी

हम बड़े हुए

सुनते पानी की कहानी

अब समझे हैं

ये कहानी तो हमारी है

हम थार के पानी हैं ।


क्षितिज तक जाती है

हमारी बणी-ठणी

एक घडले नीर के लिए

अपने पाँवों में

दूरियों के

मोटे कड़ले पहन कर

हम अमूल्य हैं

हम थार के पानी हैं ।


पानी की सुगंध

रेत में थरपा हुआ

एक शाश्वत सत्य है

जिसकी डोर

दूर आकाश में जाती है

बादलों तक

मगर...

उसकी जड़ें बहुत गहरी है ।


बहुत झीनी है

हमारी पतवार

बहुत गहरा है

मरुथल पारावार

उतरना है पार

हम थार के पानी हैं ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. दूर आकाश में जाती है

    बादलों तक

    मगर...

    उसकी जड़ें बहुत गहरी है ।

    खासकर इन पंक्तियों ने रचना को एक अलग ही ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया है शब्द नहीं हैं इनकी तारीफ के लिए मेरे पास...बहुत सुन्दर..

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  2. अतृप्त थार में मृगतृष्णा है पानी......थार का घङा तो उत्कट जी
    जिजीविषा है....न जाने कितनी कहानियां दफन है इन धोरों में...पर ये हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है........इन रेतीले धोरों में जीवन तलाशती बेहद प्रभावी है आपकी कविता......शुभकामनाएं.......बन्धु लगे रहो.....अगले सोपान पर मिलने का इन्तजार रहेगा।

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  3. आदरणीय चैनसिंहजी ,
    मेरे लिखे को अतिशयोक्ति न मानें …
    अचानक इतने ख़ूबसूरत कवि से रूबरू हो सकता हूं , कल्पना नहीं की थी मैंने।
    आंचलिक शब्दों का ऐसा सुंदर समावेश ! बहुत ख़ूब !
    "क्षितिज तक जाती है
    हमारी बणी-ठणी
    एक घडले नीर के लिए"
    वाह वाह !

    "पानी की सुगंध
    रेत में थरपा हुआ
    एक शाश्वत सत्य है"
    उपरोक्त कथन किस राजस्थानवासी को रोमांचित नहीं करेगा ?

    …और सटीक है मरुभोम का यह सच …
    "बहुत झीनी है
    हमारी पतवार
    बहुत गहरा है
    मरुथल पारावार"

    कोटिशः बधाई !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  4. क्षितिज तक जाती है

    हमारी बणी-ठणी

    एक घडले नीर के लिए

    अपने पाँवों में

    दूरियों के

    मोटे कड़ले पहन कर

    हम अमूल्य हैं

    हम थार के पानी हैं ।
    ...शानदार अनुभूति

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  5. BHAI C. .S.SHEKHAWAT JI CHHA REYA HO AJKALE TO !JABRA KAVI BANGYA ! BADHAYJE !
    RAJENDER SWARANKAR BAT KOODI NI KARI-AAP WAKAI JORDAR KAVITA LIKHAN LAG GIYA. E KAVITAVAN SANTRI HAI. KIN BATAN KARNI HAI BUN GHAT MATHE -BE TO KADAI BAITH'R KARSYAN .LIKHTA REVO. KADEI MHE E GHANOI DALIYO DALTA HA PAN PAR HAL NI PADI. KAVITA RO SAGAR JABRO UNDO HAI . GOTA MARTA REVO-KADEI TO MOTI LADH SI, EKAR FERUN BADHAI !

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  6. रेगिस्तान में रहने वाले ही जानते है एक मटके पानी का मोल...बहुत ही दिल छूने वाली रचना

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. पानी की सुगंध

    रेत में थरपा हुआ

    एक शाश्वत सत्य है

    .. बस बहुत दिनों के बाद आपके ब्‍लाग पर आया और आया तो ऐसा कि मन राजी हो गया. खूब सा.. खूब लिखा है आपने.

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