बुधवार, 12 मई 2010

लड़कियाँ

लड़कियाँ प्रतीक्षा करती हैं
अँधेरे की
क्योंकि कई बार उन्हें
रोशनी से चिढ़ होने लगती है
उनके सपने
इतने महीन हैं
इतने रेशमी हैं
और बिलकुल लड़कियों जैसे
कि रोशनी का एक ही दंड
उन्हें चकनाचूर कर दे

अँधेरे में लडकियाँ
घर से बाहर नहीं निकलती हैं
बल्कि छत के कोने से
कुछ तारों को समेट कर
अपने बालों में टाँक लेती हैं
और बना देती हैं
खाली आसमान पर
एक रंगों भरा सुंदर चित्र

धूप में लड़कियों के चेहरे को
चिपचिपा कर देती है भीड़
जिसे रात में धोकर
आईने में उड़ेल देती हैं वो
खुद को पूरा
लेकिन रात में भी
कुछ लोगों की आँखें
चमकती हैं कुत्तों और भेड़ियों की तरह

जब से लडकियाँ विज्ञापनों में आई हैं
उनकी कीमतें बढ़ गयी हैं
हर सामान के साथ
उन्हें भी खरीदा और बेचा जाता है
अब वे मूल्यवान हैं
सो अँधेरा उनका रक्षा-कवच है

लडकियाँ प्रतीक्षा करती हैं
अँधेरे की
लेकिन उनकी चिढ़ का
कोई अंत नहीं शायद

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