शनिवार, 29 जनवरी 2011

गर्भनाल


हिचकियों की गर्भनाल
बचपन के किसी कोने तक पहुँचती है
उम्र के तमाम पाखंड
भरभरा उठते हैं

ऐसी ही किन्हीं आतिशबाजियों में
एक आकाशवाणी सी
जीवन में धड़कनों की
धार सी उतर जाती है

7 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह क्या ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति है..

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  2. सृजन का एक नया रूप बहुत सुंदर , बधाई

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  3. बहुत ही सच्चा और सुन्दर सन्देश देती रचना...

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  4. आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ, क्षमा चाहूँगा,

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  5. द्वितीय पंक्ति को कृपया यह पढ़ें..
    'बचपन के किसी कोने तक पहुँचती है '

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  6. हिचकियों की गर्भनाल
    बचपन के किसी कोने तक पहुँचती है
    उम्र के तमाम पाखंड
    भरभरा उठते हैं....

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  7. प्रिय बंधुवर चैन सिंह शेखावत जी

    बहुत ही गूढ़ अर्थ लिये है आपकी रचना गर्भनाल !
    आतिशबाजियों में
    एक आकाशवाणी सी
    जीवन में धड़कनों की
    धार सी उतर जाती है

    वाह ! क्या बात है !

    हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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