लोग कहते रहे
पंख तेरे हैं पर उड़ान नहीं
कहते रहे सैकड़ों हजारों साल
बांधते रहे देहरी तक आकाश
एक सम्मोहन की तरह
सीमाएं उसके अस्तित्व पर
मढ़ती चली गई
आज उस लड़की की आँख में
छोटे-छोटे कुछ बादल तैरते हैं
सपनों की पाल खुल नहीं पाती
एक घर है
एक आँगन है
मुस्कुराहटें कम सही काफी हैं
प्रेम के कुछ प्रयास हैं
शास्त्रीय किस्म के इस सम्मोहन ने
कुछ संभावनाओं को लीला है या नहीं
कह नहीं सकते मगर
इन रंगीन पंखों को निश्चित ही
कुछ ऊंचा
और ऊंचा उड़ना चाहिये था
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति|धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात है.....उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंभावमयी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंआज उस लड़की की आँख में
जवाब देंहटाएंछोटे-छोटे कुछ बादल तैरते हैं
सपनों की पाल खुल नहीं पाती
एक घर है
एक आँगन है
मुस्कुराहटें कम सही काफी हैं
प्रेम के कुछ प्रयास हैं
bahut hi gahre bhaw
भाई चैनसिंह जी शेखावत सा,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता के लिए बधाई !
जय हो !
आपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
जवाब देंहटाएंअगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
बहुत बहुत धन्यवाद
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/