मौसम बदलते रहे तुम्हारे इर्द-गिर्द
हवाएँ ठंडी से गर्म फिर ठंडी हो गईं
बच्चे जवान होकर पिता बन गए
पौधे वृक्ष बन बैठे
पुण्य फलित हुए
पाप दण्डित हुए
सिर्फ तुम्हीं हो अरुणा
जो नहीं बदली
सैंतीस साल तुमने प्रतीक्षा को दिये
मृत्यु की
या जीवन की
हम भी नहीं समझ पाए
सोहन सात साल की सजा पाते हैं
अरुणा सैंतीस साल
(और आगे न जाने कितनी )
ये लेखा जोखा किसके हाथों है भगवान
करुणा विगलित हैं हम
हमारे स्वर
वाक् आडम्बर में शीर्ष ये जमात
दुनिया की सबसे सभ्य कौम है
न जाने कितने सोहन करवट बदलते हैं
इन अँधेरी गुफाओं में
न जाने कितनी अरुणा
सिसक भी नहीं पाती
सैन्तीसों साल
इस प्रकरण का पटाक्षेप नहीं है ये
कुछ प्रश्न तैरते हैं मंच पर
फिर दम तोड़ देते हैं दर्शकों की भीड़ में
तालियों के शोर में
कुछ पात्रों के आँसू सुने भी नहीं जाते
शायद ही कोई इतनी गहरी सोच लेकर एक अनजान व्यक्ति के बारे में लिख सके. आप कर रहें हैं सार्थक ब्लॉग्गिंग.. मेरी ढेरों शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंmain is aruna ko janna chahungi, jisne yun sab paaya ...
जवाब देंहटाएंगहराई तलक संवेदित करने वाली कविता !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
बधाई हो !
भगवान् किसी को यह कष्ट ना दे ....शुभकामनायें !!
जवाब देंहटाएंआदरणीय चैन सिंह शेखावत जी
जवाब देंहटाएंआपने बहुत मार्मिक कविता लिखी है ...अरुणा का सच सबके सामने है ..हमें इससे सीख लेने की जरुरत है ..आपका आभार
शायद उसके हाथों में मौत की रेखा अभी न हो ......
जवाब देंहटाएंखुदा के खेल हैं ....
नमस्कार
जवाब देंहटाएंगहराई तलक संवेदित करने वाली कविता !
बहुत खूब !
साधुवाद !
मार्मिक अभिव्यक्ति.. समय रुक सा गया हैं.
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