मंगलवार, 15 मार्च 2011

ये सम्मोहन नहीं तो क्या है

लोग कहते रहे
पंख तेरे हैं पर उड़ान नहीं 
कहते रहे सैकड़ों हजारों साल 
बांधते रहे देहरी तक आकाश 

एक सम्मोहन की तरह 
सीमाएं उसके अस्तित्व पर 
मढ़ती चली गई

आज उस लड़की की आँख में 
छोटे-छोटे कुछ बादल तैरते हैं 
सपनों की पाल खुल नहीं पाती 
एक घर है 
एक आँगन है 
मुस्कुराहटें कम सही काफी हैं 
प्रेम के कुछ प्रयास हैं 

शास्त्रीय किस्म के इस सम्मोहन ने 
कुछ संभावनाओं को लीला है या नहीं 
कह नहीं सकते मगर 
इन रंगीन पंखों को निश्चित ही 
कुछ ऊंचा 
और ऊंचा उड़ना चाहिये था 

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति|धन्यवाद।

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (17-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  3. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर

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  4. आज उस लड़की की आँख में
    छोटे-छोटे कुछ बादल तैरते हैं
    सपनों की पाल खुल नहीं पाती
    एक घर है
    एक आँगन है
    मुस्कुराहटें कम सही काफी हैं
    प्रेम के कुछ प्रयास हैं
    bahut hi gahre bhaw

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  5. भाई चैनसिंह जी शेखावत सा,
    बहुत अच्छी कविता के लिए बधाई !
    जय हो !

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  6. आपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
    अगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
    बहुत बहुत धन्यवाद
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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