शनिवार, 4 सितंबर 2010

साँवली घटाएँ हैं


फ़लक पे झूम रहीं साँवली घटाएँ हैं l


कि तेरे गेसुओं की बावली बलाएँ हैं l


तपती धरती रूठ गयी तो बरखा फिर


बरसी कि जैसे आकाश की अदाएँ हैं l


ऊपर से सब भीगा भीतर सूख चला


न जाने कौन से मौसम की हवाएँ हैं l


पिघल के रहती हैं ये आखिर घटाएँ


बिखरे दूर तक जब प्यास की सदाएँ हैं l


फूल पत्तियाँ देहरी आँगन चौबारे


चाँद से उतरी फरिश्तों की दुआएँ हैं l

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है!
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    भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिन
    शिक्षकदिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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