शनिवार, 3 अप्रैल 2010

याद में रोशन

गुनाह कोई और कर गए होंगे।
और इल्ज़ाम मेरे सर गए होंगे।

ओढ़ कर किरणों की जो चादर आए
जगा कर बस्ती को सहर गए होंगे।

तमाम उम्र जिनके ख़्वाब नवाबी
गुज़ार कर मुफ़लिसी गुज़र गए होंगे।

हर शाम है जिनकी याद में रोशन
ख़्यालों में वो भी संवर गए होंगे।

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