मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

ढाई-आखर

आंख्यां सूजी उडीकतां
इतरो काँईं गुमान होग्यो।

फेरूँ-फेरूँ बा'वड़ी
बेरण थारी ओळूँ।
मन रो मिन्दर सून पड़्यो
सूनो कुंकुंम थाळ रोळूँ।

रात रूवाणै कागला
रूसेड़ो भगवान् होग्यो ।

झालो दे'र बुलावै है
खेजड़ली रा खोख्र्या।
थारो नाम खुदेड़ो रे'सी
डूंगर खम्बा पोख्र्या।

बाटड़ली रो जोव्णों
म्हारो वेद पुराण होग्यो।

करड़ी घणी कुर्ळावै कुरजां
काट-काट नीं खावै है ।
नेह निरो'ई इतरो गै'रो
मन रा तार बजावै है ।

उतरूँ-उतरूँ डूबूँ -डूबूँ
'ढाई -आखर' ज्ञान होग्यो.

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