गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

एक और भीष्म


बेशक चुप हो जाना
हार जाना नहीं है
मगर चुप्पियाँ
किनारे बैठ कर तमाशा देखने का बोध है

कंठ की विवशताएँ
शब्दहन्ता बनती हैं
हवाओं में एक और भीष्म
जबडाता चला जाता है

7 टिप्‍पणियां:

  1. बेशक चुप हो जाना
    हार जाना नहीं है
    per bhism ki chuppi us waqt jayaj nahi thi ... kai baar khamoshi galat hoti hai

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  2. कंठ की विवशताएँ
    शब्दहन्ता बनती हैं
    हवाओं में एक और भीष्म
    जबडाता चला जाता है
    और चाहे, अनचाहे बहुत कुछ घटित होता जाता है

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  3. कंठ की विवशताएँ
    शब्दहन्ता बनती हैं
    हवाओं में एक और भीष्म
    जबडाता चला जाता है

    बहुत सटीक प्रस्तुति..लेकिन कई बार चुप हो जाना बहुत गंभीर परिणामों का जनक भी होजाता है..

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  4. हार जाना
    भी नहीं है
    चुप होना सदा।

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  5. आभार रश्मि जी..सुमन जी..कैलाश जी..अविनाश जी.

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  6. चुप्पी कभी हार नहीं है.

    सुन्दर लिखा है चैन सिंह जी.

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  7. चुप हो जाना
    हार जाना नहीं है
    xxxxxxxxxxxxxxxxxx
    सच कहा है आपने .......चुप्पी को समझता कोई नहीं है ......शुक्रिया

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