शनिवार, 10 जुलाई 2010

ले धूप खिला


ओ सूरज

ले धूप खिला !


चाँद का कन्धा थपथपा

हल्के - हल्के कर विदा

हवाओं को उजला अहसास करा

ले धूप खिला

बच्चों के बस्तों में भर दे

मुस्कुराहट की चासनी के शक्करपारे

बड़ों की भीड़ का बोझ हटा

ले धूप खिला

धरती सूख न जाए

बादलों को मनुहारें आ

इस दर को दूर कर

पानी को पाप से बचा

ले धूप खिला


लड़कियों के दुपट्टों की

दूर कर सारी सलवटें

उम्र के माने बता

ले धूप खिला

मंदिर की अँधेरी छाया को

बच्चों की मुट्ठियों से दूर रख

वहाँ दो पेड़ लगा

ले धूप खिला


शहर की गलियाँ

सहेजन की फलियाँ

एक सी दिखें

कुछ यंत्र सुझा

ले धूप खिला

ओ सूरज

ले धूप खिला !

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