गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

रात की कहानी


रात के चेहरे पर
रोशनी की लकीर खींचते से
आ लगे किनारे तुम्हारे ख़याल

आकाश की जाजम पर
होने लगी चाँद की ताजपोशी
तारों की जयकार घुटने लगी
एक पुरानी नदी यादों की
उत्तर से दक्षिण
दूर तक पसरती चली गई

सूरज के रखवाले ने जब खोले द्वार
आँसुओं के निशान छिपाने लगे
फूलों पर बिखरे पद-चिह्न अपने

रात की कहानी
एक उम्र सी गुजरती है
हर रात

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा पोस्ट !

    ग्राम-चौपाल में पढ़ें...........

    "अनाड़ी ब्लोगर का शतकीय पोस्ट" http://www.ashokbajaj.com/

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  2. सूरज के रखवाले ने जब खोले द्वार
    आँसुओं के निशान छिपाने लगे

    क्या लिखते हो चैनसिंह जी.. रात कैसी गुज़री, किसी को नहीं मालूम.. खूब..

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  3. आदरणीयचैन सिंह शेखावत जी
    नमस्कार !
    ला-जवाब" जबर्दस्त!!
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  4. सुन्दर रचना!
    --
    मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  5. sundar shabdo se sajaayaa hai aapne .........achchha likhte hai aap..........shubhakamnaye

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  6. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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  7. रात की कहानी
    एक उम्र सी गुजरती है
    हर रात
    यकीनन ..

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  8. सूरज के रखवाले ने जब खोले द्वार
    आँसुओं के निशान छिपाने लगे
    फूलों पर बिखरे पद-चिह्न अपने

    रात की कहानी
    एक उम्र सी गुजरती है
    हर रात
    aur intzaar rahta hai ek subah ka

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