नयन हो गए आज फिर सजल ।
याद वो आने लगे प्रतिपल ।
टूट के बरसा अबके सावन
सहमा-सिहरा घर का आँगन
हाल ये उनसे कह दे मन
हरिया गयी है पीर चंचल
याद वो आने लगे प्रतिपल।
प्राण वेदना विकल सघन सी
पली बढ़ी फैली है वन सी
विगत कथाएँ छाई घन सी
कठिन है कोई जाए बहल
याद वो आने लगे प्रतिपल।
ज़िन्दगी में अनोखे रंग भरे हैं .......ईश्वर ने । रंग मौसम के ....रंग भावों के ...... रंग संवेदनाओं के । इन्हीं रंगों को देखने , समझने , और अभिव्यक्त करने की कोशिश है ये ब्लॉग.... ...... ज़िन्दगी - ऐ- ज़िन्दगी.... ।
मंगलवार, 30 मार्च 2010
सोमवार, 22 मार्च 2010
मेरे आँगन चुपके-चुपके
प्रेम जागा भोर-सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
बौराए बन फागुन - से
मदमस्त मेरे
स्वप्न - कुञ्ज
गले - पिघले प्रतिपल
ऊष्ण श्वासों से
पाषाणी - पुंज
नशा साँझ का
खुमार बन चढ़ा सवेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
मेरे आँगन चुपके - चुपके
खुसर-फुसर तुलसी लहराए
आहट उनकी सुन
मन की चिरिया पर फहराए
रूप ने उनके
डाले हृदय में डेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)