मंगलवार, 30 मार्च 2010

नयन हो गए आज फिर सजल ।
याद वो आने लगे प्रतिपल ।

टूट के बरसा अबके सावन
सहमा-सिहरा घर का आँगन
हाल ये उनसे कह दे मन

हरिया गयी है पीर चंचल
याद वो आने लगे प्रतिपल।

प्राण वेदना विकल सघन सी
पली बढ़ी फैली है वन सी
विगत कथाएँ छाई घन सी

कठिन है कोई जाए बहल
याद वो आने लगे प्रतिपल।

सोमवार, 22 मार्च 2010

मेरे आँगन चुपके-चुपके


प्रेम जागा भोर-सा
मिट चले सारे अँधेरे ।


बौराए बन फागुन - से
मदमस्त मेरे
स्वप्न - कुञ्ज
गले - पिघले प्रतिपल
ऊष्ण श्वासों से
पाषाणी - पुंज

नशा साँझ का
खुमार बन चढ़ा सवेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।

मेरे आँगन चुपके - चुपके
खुसर-फुसर तुलसी लहराए
आहट उनकी सुन
मन की चिरिया पर फहराए

रूप ने उनके
डाले हृदय में डेरे ।
प्रेम जागा भोर - सा
मिट चले सारे अँधेरे ।


रविवार, 21 मार्च 2010

जीवन से अभिराम छिन रहे हैं।
मुझ से मेरे राम छिन रहे हैं।

प्रेम पगे हैं जिनसे जन मन
गोकुल वृंदा श्याम छिन रहे हैं।

भूलूं स्वयं को अपने घर में
घर के सारे काम छिन रहे हैं।

बाजारों की चमक दमक में
तीरथ गंगा धाम छिन रहे हैं।

रोम-रोम में रमने वाले
हे! मेरे भगवान् छिन रहे हैं.